1. दोस्ती जैसे ज़िन्दगी का
दरवाज़ा खटखटाता हुआ....
छू भी ले तो ज़िन्दगी
गुनगुनाती है..
इसके आने से जैसे
सांस आती है।
2. एक ख़ुशी, एक सुबह,
फिर एक शाम आ गई।
मगर ये शाम गवाही है कि,
सुबह आस-पास है..!
3. दिल की बात दिल में नहीं रखनी चाहिए..
कह देना चाहिए....,
ताकि देर न हो जाए!
4. मुश्किल की आंखों में आंखे डालनी होती।
हैं.. और बताना होता है उसे.., कि अगर
रास्ता संकरा है, तो रास्ता बदलना होगा..
उसे!
5. सब सपनों का ढेर लगाकर अलमारी भर ली
थी मैंने। एक रोज़ अचानक खोल कर देखा..
सब सपने भीगे-भीगे से थे!
6. सामने रास्ता न दिखने का मतलब यह नहीं,
कि आगे रास्ता ही न हो!
कोहरा सिर्फ दीवार सा दिखता है.., मगर
होती हवा ही है!
7. हवा यूं तो कुछ नहीं होती..., मगर
पहिये में भर दो, तो पत्थर हो जाती है।
8. बोझ ये मन के जायें उतर
दिल ये मेरा फिर से खिले
काश! ये सब एक ख्वाब हो
आंख खोलूं तो सब ठीक मिले!
9. गुस्सा उस मोमबत्ती की तरह होता है जिसमें
दोनों तरफ से आग लगी हो..,
लगता है ज़्यादा रोशनी देगी, मगर
जलता हमारा हाथ है।
10. ढूंढा तो पत्थर, देखा तो कोयला,
तराशा तो हीरा! हर नगीने कि बस इतनी
सी कहानी होती है।
11. पहाड़ पर चढ़ने का एक उसूल है,
झुक कर चलो, दौड़ो मत!
ज़िंदगी भी सिर्फ इतना ही मांगती है हमसे।
दरवाज़ा खटखटाता हुआ....
छू भी ले तो ज़िन्दगी
गुनगुनाती है..
इसके आने से जैसे
सांस आती है।
2. एक ख़ुशी, एक सुबह,
फिर एक शाम आ गई।
मगर ये शाम गवाही है कि,
सुबह आस-पास है..!
3. दिल की बात दिल में नहीं रखनी चाहिए..
कह देना चाहिए....,
ताकि देर न हो जाए!
4. मुश्किल की आंखों में आंखे डालनी होती।
हैं.. और बताना होता है उसे.., कि अगर
रास्ता संकरा है, तो रास्ता बदलना होगा..
उसे!
5. सब सपनों का ढेर लगाकर अलमारी भर ली
थी मैंने। एक रोज़ अचानक खोल कर देखा..
सब सपने भीगे-भीगे से थे!
6. सामने रास्ता न दिखने का मतलब यह नहीं,
कि आगे रास्ता ही न हो!
कोहरा सिर्फ दीवार सा दिखता है.., मगर
होती हवा ही है!
7. हवा यूं तो कुछ नहीं होती..., मगर
पहिये में भर दो, तो पत्थर हो जाती है।
8. बोझ ये मन के जायें उतर
दिल ये मेरा फिर से खिले
काश! ये सब एक ख्वाब हो
आंख खोलूं तो सब ठीक मिले!
9. गुस्सा उस मोमबत्ती की तरह होता है जिसमें
दोनों तरफ से आग लगी हो..,
लगता है ज़्यादा रोशनी देगी, मगर
जलता हमारा हाथ है।
10. ढूंढा तो पत्थर, देखा तो कोयला,
तराशा तो हीरा! हर नगीने कि बस इतनी
सी कहानी होती है।
11. पहाड़ पर चढ़ने का एक उसूल है,
झुक कर चलो, दौड़ो मत!
ज़िंदगी भी सिर्फ इतना ही मांगती है हमसे।
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